भारत का पहला दुहरा-फेफड़ों का प्रत्यारोपण सफल

 39 वर्ष मरीज़ पर फेफड़ों के प्रत्यारोपण में ब्रिज के तौर पर 'ईसीएमओ' का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया

मुंबई, 9 अक्टूबर 2020 :- अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप ने अवयव प्रत्यारोपण में अपने अग्रसर स्थान को फिर एक बार साबित किया है।  कोविड वैश्विक महामारी के दौरान भारत का पहला दुहरा फेफड़ों का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किए जाने की घोषणा अपोलो हॉस्पिटल्स ने की है। इस मरीज़ की आयु 39 वर्ष थी, कोविड की वजह से जब पूरा देश लॉकडाउन में था तब इस मरीज़ के फेफड़ों में समस्या के कारण उसकी हालत गंभीर बन चुकी थी। फेफड़ों का प्रत्यारोपण होने तक, दाता से फेफड़ें मिल पाए तब तक मरीज़ के ह्रदय और फेफड़ों का कार्य सही तरीके से चल पाए इसलिए उसे ईसीएमओ - एक्स्ट्रा कॉर्पोरल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन पर रखा गया था। 29 जुलाई को चेन्नई के अपोलो हॉस्पिटल्स में दुहरा फेफड़ों का प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया गया और 27 अगस्त को पूरी तरह से ठीक होने के बाद मरीज़ को घर भेजा गया।

अपोलो हॉस्पिटल्स के सीनियर कंसल्टेंट कार्डिओथोरासिक हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ पॉल रमेश थंगराज ने बताया, "अवयव प्रत्यारोपण प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण होती है लेकिन उससे जीवनदायी लाभ मिलते हैं। प्रत्यारोपण में बीमार अवयवों को निकालकर उनकी जगह पर स्वस्थ अवयव प्रत्यारोपित किए जाते हैं। इससे मरीज़ों को नया जीवन मिलता है जिसे वह लंबी आयु तक ख़ुशी से जी सकते हैं।  चेन्नई के अपोलो हॉस्पिटल्स में सभी प्रकार के अवयव प्रत्यारोपण के लिए आवश्यक क्षमताएं और सुविधाएं हैं, इसमें लिवर, किडनी, ह्रदय, फेफड़ें, पैन्क्रीअस और इन्टेस्टाइन इन महत्वपूर्ण अवयवों के साथ-साथ ह्रदय-फेफड़ें, किडनी-पैन्क्रीअस और अन्य अवयवों के संयुक्त प्रत्यारोपण भी शामिल हैं। हमारे ट्रांसप्लांट सेंटर में सभी आधुनिकतम प्रौद्योगिकी होने की वजह से मरीज़ को सर्वोत्तम सुविधाएं मिलती हैं।  हमारे ऑर्गन ट्रांसप्लांट सर्जन और सहायक टीम्स अवयवदाता (अगर ज़िंदा है तो) और मरीज़ के साथ काम करते हैं, जिससे उन्हें अच्छे परिणाम मिलते हैं और उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। कोविड के दौरान दुहरे फेफड़ों के प्रत्यारोपण को मिली सफलता हमारी टीम द्वारा पिछली एक सदी से किए जा रहे प्रयासों, मेहनत और हमारी सर्वोत्तम निपुणताओं का फलित है।"

अपोलो हॉस्पिटल्स, चेन्नई के कंसल्टेंट कार्डिओथोरासिक हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ टी सूंदर ने बताया, "महामारी के दौरान प्रत्यारोपण सर्जरी करना और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण बन जाता है। मरीज़, उसके रिश्तेदार और स्वास्थ्य कर्मचारियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना आवश्यक होता है। इसके लिए  बहुत ही कड़े  नियम बनाए गए हैं, उनके अनुसार प्रत्यारोपण मरीज़ों पर इलाज सिर्फ ऐसी जगह पर किए जाते हैं जहां कोई भी कोविड मरीज़ नहीं है। उनकी देखभाल करने वाले कर्मचारी सिर्फ उनके लिए काम करते हैं और उन सभी की कोविड जांच की जाती है। सर्जरी करने से पहले जिस मरीज़ पर सर्जरी करनी है उसकी पूरी जांच होती है और उसके नतीजें डॉक्टर्स को एक विशेष सॉफ्टवेयर द्वारा भेजें जाते हैं, अगर प्रत्यक्ष जांच ज़रूरी है तो ही मरीज़ तक जाने की अनुमति दी जाती है। सर्जरी के बाद मरीज़ की देखभाल एक विशेष टीम द्वारा की जाती है और यह टीम अन्य किसी भी मरीज़ के पास नहीं जाती या वहां काम नहीं करती।  मरीज़ के साथ बहुत ही सीमित शारीरिक संपर्क हमारी ट्रांसप्लांट टीम की विशेषता है और अपोलो हॉस्पिटल्स ट्रांसप्लांट प्रोग्राम की शुरूआत से लेकर हम इसका पालन कर रहे हैं। इन्हीं की वजह से हमें अच्छे दीर्घकालिक परिणाम और बहुत ही कम संक्रमण दर कायम रखने में सफलता मिल रही है।"

अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के चेयरमैन डॉ प्रताप सी रेड्डी ने बताया, "हमारे ट्रांसप्लांट प्रोग्राम की शुरूआत 1995 में हुई और तब से लेकर आज तक हमने इसमें कई महत्वपूर्ण पड़ाव हासिल किए हैं।  कोविड के दौरान दुहरा फेफड़ों का प्रत्यारोपण सफल होना यक़ीनन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।  स्वास्थ्य क्षेत्र में हमारे अग्रसर स्थान को बरक़रार रखते हुए आधुनिकतम चिकित्सा प्रौद्योगिकी और अनुसंधान के उपयोग पर जोर देने की वजह से ही हम यह सफलता हासिल कर पाए हैं। हमारे आज तक के प्रत्यारोपण सफर में कई महत्वपूर्ण पड़ाव पार किए हैं, कई बातें सबसे पहले हमने कर दिखायी हैं, सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अवयव प्रत्यारोपण सर्जरी में सबसे आगे रहने के लिए किए जा रहे प्रयासों का यह फल है।  पहले पेडिएट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट से लेकर पहले कैडेवरिक ट्रांसप्लांट, अत्यंत गंभीर स्थिति में किए गए पहले सफल लिवर ट्रांसप्लांट, पहले लिवर-किडनी कम्बाइन्ड ट्रांसप्लांट और अन्य कई अवयवों के प्रत्यारोपण तक यह सूचि काफी लंबी है। हमारी ट्रांसप्लांट टीम ने इस क्षेत्र में अग्रसर स्थान हासिल किया है।  पिछले कई सालों में भारत में प्रत्यारोपण क्षेत्र में हमारी टीम ने कई नए, उच्चतम मानदंड रचे हैं।  मुझे पूरा भरोसा है कि आगे चलकर भी यह सिलसिला जारी रहेगा।  मुझे यह बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि आज भारत में अलग-अलग प्रत्यारोपण सर्जरीज् का सफलता दर 90% से ज्यादा है।  अपोलो हॉस्पिटल्स ऑर्गन ट्रांसप्लांट सेंटर की गुणवत्ता उच्चतम है और भारत के साथ-साथ दुनिया भर के मरीज़ों के लिए यह आशादायी बना हुआ है।" 

अपोलो हॉस्पिटल्स की अवयव प्रत्यारोपण टीम में देश के सर्वोत्तम और अनुभवी ट्रांसप्लांट सर्जन्स शामिल हैं जो मरीज़ों की अच्छी देखभाल करते हैं। उनके साथ ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेटर्स, सोशल वर्कर्स, मनोरोग चिकित्सक और अनेस्थिटिस्ट आदि का सहयोग भी इसमें शामिल है। सर्जिकल प्रौद्योगिकी में लगातार सुधार किए जाने से मरीज़ों को सर्जरी और उसके बाद ठीक होने का वेदना मुक्त, सरल, बहुत ही अच्छा अनुभव मिलता है। मरीज़ों को इलाजों के अलग-अलग विकल्प दिए जाते हैं और उससे मिलने वाले नतीजें वैश्विक स्तर के सर्वोत्तम इलाज़ और उनके प्रभाव की बराबरी के होते हैं।


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