परमसंत सद्गुरूदेव श्री हंस जी महाराज की 125वीं जयंती के सुअवसर पर कार्यक्रम

ईश्वर एक है, मानवता एक है — और प्रेम ही सभी धर्मों का सार है।

          — परमसंत सद्गुरूदेव श्री हंस जी महाराज


परमसंत सद्गुरूदेव श्री हंस जी महाराज, आध्यात्मिक गुरु, मानवतावादी एवं आधुनिक युग में सच्चे आत्मज्ञान के प्रवर्तक थे। वे 8 नवम्बर 1900 को उत्तराखंड के हरिद्वार के निकट ग्राम गाड़गी सेड़िया, पट्टी तलाई, पौड़ी गढ़वाल में जन्मे, उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अंतर शांति, मानव एकता और स्व-ज्ञान के प्रसार हेतु समर्पित किया। 


अपने दिव्य ज्ञान और करुणा के माध्यम से उन्होंने अनगिनत आत्माओं को यह अनुभव कराया कि परमसत्य प्रत्येक मनुष्य के भीतर निहित है। अपने सत्संग कार्यक्रमों के माध्यम से मानवता को यह सिखाया कि सच्चा धर्म — मानव धर्म — भेदभाव रहित प्रेम और एकता का धर्म है जिससे पूरे विश्व को एक किया जा सकता है।


उन्होंने समाज को जाति, पंथ, और धर्म के बंधनों से ऊपर उठने हेतु सतत प्रेरणा देते रहे और 1944 में हरिद्वार के समीप गंगा तट पर श्री प्रेमनगर आश्रम की स्थापना की — जो आज भी ध्यान, अनुशासन और निःस्वार्थ सेवा का केंद्र बना हुआ है।


मानव उत्थान सेवा समिति (M.U.S.S.) की स्थापना भी उनके इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाने हेतु हुई — जिससे शिक्षा, महिला कल्याण, आपदा राहत, और सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के माध्यम से मानव धर्म की भावना जीवित रहे। मानव उत्थान सेवा समिति आज भी उनके संदेश और ज्ञान की जीवंत प्रेरणा है — आध्यात्मिक उत्थान, सेवा और विश्व बंधुत्व के माध्यम से मानवता की सेवा करना।

परमसंत सद्गुरूदेव श्री हंस जी महाराज के आध्यात्मिक विचारों को जनमानस के आत्मिक कल्याण हेतु प्रचारित करने के उदयेश से मानव उत्थान सेवा समिति ने श्री हंस जी महाराज की 125 वीं जयंती को हर्षोल्लास से मनाने का निर्णय लिया है। दिनांक 8 तथा 9 नवंबर को श्री हंस नगर आश्रम, पंड़वाला कलाँ, घुमनहेड़ा रोड, नई दिल्ली में श्री हंस जयंती कार्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाएगा। इस कार्यक्रम में देश-विदेश से श्रद्धालु पधारेंगे; और संत-महात्माओं तथा आध्यात्मिक विचारकों के सम्बोधन से कृतार्थ होंगे। इसी शृंखला मे दिनांक २  नवम्बर रविवार  को सुबह १० बजे से २ बजे तक  मानव उत्थान सेवा समिति, वसई (मुंबई) शाखा द्वारा एक दिवसीय विशाल सत्संग कार्यक्रम का आयोजन श्री हंस विजय नगर आश्रम, एवरशाइन सिटी, वसई पूर्व, जिला पालघर मे होगा ।


सदगुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज द्वारा चलाया गया महान मिशन


अपने पूज्य पिता एवं गुरु के दिव्य मिशन को आगे बढ़ाते हुए, सतगुरु श्री सतपाल जी महाराज ने प्रेम, शांति और आत्मबोध के संदेश को विश्वव्यापी रूप प्रदान किया।


उनके आध्यात्मिक नेतृत्व में मानव उत्थान सेवा समिति एक वैश्विक आंदोलन के रूप में विकसित हुई है — जो सेवा, शिक्षा और आत्मिक ज्ञान के माध्यम से मानवता को उन्नत करने हेतु समर्पित है।


श्री महाराज का मिशन प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निहित दिव्यता को जागृत करना, धर्मों के बीच सद्भाव बढ़ाना और समाज में नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना करना है।


उनकी मानवीय सेवाएँ — जैसे निःशुल्क चिकित्सा शिविर, रक्तदान, पर्यावरण जागरूकता अभियान, तथा निर्धन बच्चों की शिक्षा — अध्यात्म और सेवा का अद्भुत संगम हैं, जो “ज्ञान को कर्म में परिणत करने” की प्रेरणा देते हैं।


श्री सतपाल जी महाराज, एक आध्यात्मिक नेता, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में, करोड़ों लोगों को शांति, करुणा और धर्मपरायणता के मार्ग पर प्रेरित कर रहे हैं। उनकी शिक्षाएँ व्यक्तियों को अंतरात्मा का अनुभव कर एक जागरूक, न्यायपूर्ण और सद्भावनापूर्ण समाज के निर्माण हेतु प्रेरित करती हैं।



125 वर्षों के दिव्य आलोक का उत्सव


परम संत श्री हंस जी महाराज की 125वीं जयंती के पावन अवसर पर, भारत और विदेशों में श्रद्धालु उनके जीवन और संदेश को स्मरण करने हेतु एकत्रित होंगे।


मुख्य समारोह दिल्ली आश्रम (8 नवम्बर) तथा वसई आश्रम, मुंबई (2 नवम्बर) में होंगे, जिनमें सत्संग, भजन-संकीर्तन, ध्यान सत्र और सेवा कार्य आयोजित किए जाएंगे।


इस पावन पर्व पर हम उनके दिव्य उपदेशों को नमन करते हुए, सतगुरु श्री सतपाल जी महाराज के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिन्होंने इस पवित्र मिशन को अटूट श्रद्धा और करुणा के साथ आगे बढ़ाया है।


ईश्वर करें, उनकी दिव्य प्रेरणा मानवता को शांति, एकता और आध्यात्मिक प्रकाश के मार्ग पर अग्रसर करती रहे।



मानव उत्थान सेवा समिति के बारे में


परम संत श्री हंस जी महाराज द्वारा स्थापित और सतगुरु श्री सतपाल जी महाराज के मार्गदर्शन में संचालित मानव उत्थान सेवा समिति एक सामाजिक व आध्यात्मिक संस्था है जो अशिक्षा, जातिगत भेदभाव और सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन हेतु कार्यरत है।


यह संस्था पूरे भारत में सेवा, शिक्षा और आत्मज्ञान के माध्यम से एकता, करुणा और आत्मबोध को बढ़ावा देती है।




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